Thursday 19 November, 2009

दरवाजा खुला हो या बंद


दोपहर तीन बजे का वक्त होगा। किसी काम से एक परिचित के घर दाखिल हुआ ही था कि मियां-बीवी का जोरदार झगड़ा सुनाई देने लगा। यहां पति को शक है कि पत्नी को कम सुनता है और पत्नी को लगता है कि जब तक ऊंची आवाज में बात ना करे पति पर असर नहीं होता। इसी चक्कर में दोनों का वॉल्यूम हाई रहता है।आज झगड़े की वजह छोटी थी या बड़ी, इस बारे में सभी की राय अलग-अलग हो सकती है। घटना कुछ इस तरह है। इस घर के इकलौते कमरे की कुंडी ठीक से बंद नहीं होती। पत्नी जी कपड़े बदल रही थीं कि दोपहर भोज के लिए पधारे पति सीधे कमरे में प्रवेश कर गए। इससे पहले पूछा भी कि क्या कर रही हो? जवाब मिला-'जरा रुको, कपड़े बदल रही हूं।' पति को इस आदेश की पालना करना सही नहीं लगा और पति होने का हक जमाते हुए अंदर घुसते ही ऑर्डर दे डाला-'जल्दी करो, बहुत भूख लगी है। खाना गर्म करो।'पति की इस हरकत से पत्नी तिलमिला गई और युद्ध शुरू हो गया। दोनों में से सही कौन...इसके निर्णय के लिए जज बना डाला मुझे और घटना का ब्यौरा दोनों ने अपने-अपने तरीके से देने लगे। पत्नी की नजर में ये गलत था तो पति का कहना था कि पति से कैसा परदा...इसमे मै क्या बोलूं...' यह कहकर वहां से निकल लिया1 सभी की अपनी राय हो सकती हैं1 मुझे यहां पत्नी की बात ज्यादा सही लगी। कुछ लाइनें भी याद आ गईं, जो शायद निदा फाजली साहब की हैं...

अगर तुम समझते हो

बीवी घर की इज्जत होती है

तो खुदा के लिए उस इज्जत की खातिर

दरवाजा खुला हो या बंद

हमेशा दस्तक देकर ही घर में दाखिल हुवा करो

2 comments:

  1. हमेशा दस्तक देकर ही घर में दाखिल हुवा करो nice

    ReplyDelete

Followers

हिन्दी में लिखिए

wow

dil ki bat

गुलाबी दिल आपके ब्लॉग पर

About Me

My photo
खुद को समझने की कोशिश लंबे समय से कर रहा हूं। जितना जानता हूं उतने की बात करूं तो स्कूल जाने के दौरान ही शब्दों को लय देने का फितूर साथ हो चला। बाद में किसी दौर में पत्रकारिता का जुनून सवार हुआ तो परिवार की भौंहे तन गईं फिर भी १५ साल से अपने इस पसंदीदा प्रोफेशन में बना (और बचा हुआ) हूं, यही बहुत है। अच्छे और ईमानदार लोग पसंद हैं। वैसा ही रहने की कोशिश भी करता हूं। ऐसा बना रहे, यही कामना है।