Saturday 11 September, 2010

कहा सुना माफ़

२००९ में मुम्बई में जिस फूलों वाली लड़की ने मुझे कर्ज में डाला था उसने मुझे ब्लॉग पर भी कर्ज से मुक्त नहीं होने दिया. पूरे ८ महीने बीत गए और मै लाख चाह कर भी फूलों वाली लड़की की दास्ताँ नहीं कह सका. इस दैरान समंदर में जाने कितना पानी बह गया इसलिए जी करता है कि उसका कर्जदार बना रहूं. क्या पता अपनी इस गलती से जीवन का कोई और नया सबक हासिल कर सकूं. अख़बार में पूरे १५ साल रिपोर्टिंग करने के बाद अपनी मर्जी से अब डेस्क का काम करने का निर्णय लिया है. ये सोच कर कि जिस भूपेश को कही पीछे छोड़ आया था, शायद उससे कही मुलाकात हो जाये. इसलिए कहा सुना माफ़ करियेगा. उम्मीदों का नया सफ़र शुरू कर रहा हूँ. इस उम्मीद पे कि कम से कम अपनों कि उम्मीद पे खरा उतर सकू.

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खुद को समझने की कोशिश लंबे समय से कर रहा हूं। जितना जानता हूं उतने की बात करूं तो स्कूल जाने के दौरान ही शब्दों को लय देने का फितूर साथ हो चला। बाद में किसी दौर में पत्रकारिता का जुनून सवार हुआ तो परिवार की भौंहे तन गईं फिर भी १५ साल से अपने इस पसंदीदा प्रोफेशन में बना (और बचा हुआ) हूं, यही बहुत है। अच्छे और ईमानदार लोग पसंद हैं। वैसा ही रहने की कोशिश भी करता हूं। ऐसा बना रहे, यही कामना है।