Wednesday, 23 December 2009

डॉ.अजय ke 'चेहरे'




kuch बेहद शांत, kuch डरे-सहमे, kuch निश्चल तो kuch गुस्से से तमतमाए हुए। यहां चेहरे ही चेहरे हैं। जिंदगी kuch जाने कितने रंग अपनी safed -काली लाइनों में समेटे ये चेहरे हमारे आस-पास ke ही हैं। उसी भीड़ का हिस्सा जिसमें हम-आप भी एक शिनाkhaत भर हैं। एक चित्रकार ke तौर पर डॉ. अजय जैतली ने इन चेहरों को पढऩे से बड़ा जो काम किया है वह है इन चेहरों ke पीछे छिपे चेहरों की तलाश यानी 'बियांड faces । इलाहाबाद विश्वविद्‌यालय ke दृश्य कला विभाग ke अध्यक्ष और चित्रकार डॉ. अजय जैतली की तीन दिवसीय प्रदर्शनी 'बियांड पᆬेसेस' मंगलवार से निराला सभागार में शुरू हुई। इसे देखने वᆬुछ नामचीन, kuch विषय विशेषज्ञ तो वᆬुछ कला जिज्ञासु भी पहुंचे। चित्रों को देखकर उनका अपना अंतस भले ही अलग-अलग ढंग से भीगा हो लेकिन कला की एक ताजी बयार शायद सभी को छू कर निकल गई। चारकोल और पेस्टल कलर की आड़ी-तिरछी लाइनों वᆬे बीच से झांकते लाल, नीले, हरे और गहरे बैंगनी 'चेहरे' शायद किसी और ही लोक की रचना करते दिखते हैं जबकि ये चेहरे हैं हमारे आस-पास ke ही। डॉ. अजय की पहचान की शायद वजह भी यही है कि आम सजेタट को भी बेहद खास अंदाज में पेंट करते हैं। पूरी तरह से अलहदा। उद्‌घाटन ke बाद साहित्यकार-पत्रकार प्रदीप सौरभ भी डॉ. अजय वᆬे चित्रों पर वᆬुछ ऐसी ही टिप्पणी करते हैं,' अजय ने इन चित्रों ke लिए पेस्टल और कोयले का इस्तेमाल किया है। इसमें टूल्स, ब्रश नहीं बल्कि उंगलियां बनती हैं-यानी सब kuch डायरेタट दिल से।' खुद डॉ.अजय भी अपने चेहरों ke बारे में बताते हैं 'मैं हर चेहरे की जिंदगी की लड़ाई में शामिल हुआ।

1 comment:

  1. ab unki patango per based painting ka intzar hai.akhbar walo se nivedan hai ki udghatan ke poorv soochna de.

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खुद को समझने की कोशिश लंबे समय से कर रहा हूं। जितना जानता हूं उतने की बात करूं तो स्कूल जाने के दौरान ही शब्दों को लय देने का फितूर साथ हो चला। बाद में किसी दौर में पत्रकारिता का जुनून सवार हुआ तो परिवार की भौंहे तन गईं फिर भी १५ साल से अपने इस पसंदीदा प्रोफेशन में बना (और बचा हुआ) हूं, यही बहुत है। अच्छे और ईमानदार लोग पसंद हैं। वैसा ही रहने की कोशिश भी करता हूं। ऐसा बना रहे, यही कामना है।