बहुत दिन बाद छुट्टी का सदुपयोग करने शनिवार को बिना बताए एक पुराने मित्र केञ् घर गया था। दुनिया से अलग 'अवकाश चक्रञ्' होने केञ्ञ्कारण मुझे इस तरह अचानक अपने दरवाजे पर देख वे कुञ्छ अकबकाए तो लेकिन भले मानस की तरह दांत दिखाते हुए स्वागत करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। मित्र की पत्नी शहर केञ् एक औसत दर्जे केञ् स्कूञ्ल में पढ़ाती हैं। चारलृछह हजार की पगार में जीवन की पूरी ऊर्जा चूस लेने की स्कूञ्ल प्रबंधकों को लेकर उनकी खुन्नस अタसर उनकी बातों में दिखती थी लेकिन शनिवार शायद कुञ्छ ज्यादा बुरा था। औपचारिक बातचीत केञ् बीच आई बेस्वाद चाय और कुञ्छ सिल चुकेञ् बिस्कुञ्ट उनकेञ् गुस्से को साफ बयां कर रहे थे। मुझे भाभी जी केञ् गुस्से का अंदाजा तब ही हो गया था जब 'सुनो जी' की हांक केञ् बीच कुञ्छ क्षण केञ् लिए किचन में गए। लौटे तो चेहरा फक था। उन्होंने झेंप मिटाते हुए कहा था, बहुत थक गई है आज। मैनेजर ने अचानक ही आज बैग चेकिंग में लगा दिया था, यह भी कोई टीचर का काम हैं। 'सब साले....' मैंने बीच में टोक दिया। छोडि़ए भाई साहब। प्राइवेट नौकरी में ये सब तो झेलना ही पड़ता है।
माहौल सहज हुआ तो बात आगे बढ़ गई। ये बैग चेकिंञ्ग का タया मामला था भाभी जी। पहले तो वे कुञ्छ संकोच में पड़ीं लेकिन धीरेलृधीरे गुस्से की असल वजह परत दर परत बाहर निकलने लगी। 'नौवींलृदसवीं केञ् लड़केञ्लृलड़कियां और उनका दिमाग तो देखो...स्कूञ्ल बैग में जितने नोट्स नहीं हैं, उतने तो लव लेटर हैं। गोलाप्रकार लाना भूल गईं लेकिन लिपस्टिक और आईलृलाइनर लाना नहीं भूलीं.... देखो तो बद्तमीजी, १०वीं का लड़का बैग में कंञ्डोम लेकर आया था.....' धारा प्रवाह बोलती उनकी जुबान सहसा अटक सी गई। कंञ्डोम का नाम बिंदास बोलने का नारा शायद उनकेञ् गले नहीं उतरा था, सो वह कुञ्छ असहज हो गईं। माहौल फिर थोड़ा भारी हो गया। मैं भी बहुत देर तक बैठने की हिमत नहीं जुटा पाया और दुआलृसलाम करकेञ् निकल पड़ा। रात भी ठीक ढंग से सो नहीं सका। 'बस्ते का कंञ्डोम' अब भी मेरे जेहन में किसी गुबारे सा ड्डूञ्लता जा रहा है, हर पल कुञ्छ और बड़ा।
Sunday, 26 July 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Followers
हिन्दी में लिखिए
wow
dil ki bat
About Me
- BHUPESH
- खुद को समझने की कोशिश लंबे समय से कर रहा हूं। जितना जानता हूं उतने की बात करूं तो स्कूल जाने के दौरान ही शब्दों को लय देने का फितूर साथ हो चला। बाद में किसी दौर में पत्रकारिता का जुनून सवार हुआ तो परिवार की भौंहे तन गईं फिर भी १५ साल से अपने इस पसंदीदा प्रोफेशन में बना (और बचा हुआ) हूं, यही बहुत है। अच्छे और ईमानदार लोग पसंद हैं। वैसा ही रहने की कोशिश भी करता हूं। ऐसा बना रहे, यही कामना है।
भूपेश जी (शेखर) ब्लागिंग की दुनिया में स्वागत। कम समय में बहुत कुछ लिख दिया। सतीश जी ने चादू की पुडिय़ा से जो मंत्र दिया है, उसमें थोड़ी अशुद्धि है इसलिए पढऩे में तकलीफ होती है। मेरा दिया हुआ मंत्र आजमाएँ, लोगो की तकलीफ दूर हो जाएगी। वहरहाल, बहुत सुंदर लगा। आप जैसे सकारात्मक सोच वाले और क्रियेटिव व्यक्ति के लिए यह अच्छा माध्यम है। हम लोग तो बस एेसे ही...। उम्मीद है कि इसी तरह अच्छा-अच्छा पढऩे को मिलेगा। बहुत जल्द सत्यार्थ मित्र के ब्लाग संग्रह पर एक किताब आने वाली है।
ReplyDeleteब्लाग जगत में आपका स्वागत है । ऐसे ही लगे रहिए । फान्ट की दिक्कत तो दो दिन में हल हो जायेगी । आपकी लेखनी में धार है । जल्दी ही आप लोकप्रिय हो जायेंगे ।
ReplyDeleteएक बार फिर से बधाई ।
नई पीढ़ी में काफी उत्साह है, गोला प्रकार भूल जाते है नही भूलते तो ....
ReplyDeleteaapne jo bhi likha usme sahajta ,saralta,swabhavikta,aur samvedansheelta dikhti hai.bahut achha likhte hai aap.bahut kuchh seekhne ko milega.manobhavo ko padhne me parangat hai,patrkaar jo thahre!
ReplyDelete