Monday, 27 July 2009
चिड़िया के पंख-२(पहला अंक पढ़ने के बाद ही इस अंक से जुड़ पाएंगे )
मैंने अचानक अपने कंधे पर एक कंपकंपाता हाथ मससूस किया था। एक हाथ से अपने बच्चे को गोद में संभाले युवती ने कस कर मेरी शटॆ पकड़ रखी थी। मैं थोड़ा और संयत हो गया। मेरे लिए बाइक चलाना लगातार कठिन होता जा रहा था। घर के बिलकुल करीब पहुंच कर भी घर न पहुंच पाने का दबाव भी था। युवती मुझे रास्ता बताती रही और मैं कच्ची-पक्की गलियों से होता हुआ, एक झोपड़ीनुमा पक्के मकान के सामने रुक गया। वह धीरे से मेरे कंधे का सहारा लेकर उतर गई। बारिश की अथाह बूंदों के बीच भी उसके आंसू बिल्कुल अलग दिख रहे थे। मेरे मुंह से सिफॆ इतना निकला, घर में जाओ मैं अभी उनको लेकर भी आता हूं। उसकी अपलक आंखें बहुत कुछ कह रही थीं। मैंने बाइक मोड़ कर फिर कानपुर रोड पहुंचा। पैदल चलते युवक कुछ आगे आ चुका था। बच्चे की हालत और बुरी हो चुकी थी। मुझे दोबारा देखकर उसने एक गहरी सांस ली। किसी अनजान के साथ रात के ११ बजे पत्नी को भेजने का तनाव कोई भी समझ सकता है। युवक को लेकर करीब आधे घंटे मैं फिर उसी घर के सामने था। युवती घर के बाहर अब भी खड़ी। बच्चा गोद में नहीं था। पती और बच्चे के साथ मुझे देख उसके हाथ अचानक ही जुड़ गए। युवक भी दुआएं देता रहा। घर पहुंचते-पहुंचते साढ़े बारह हो गए। देर होने के कारण पत्नी ही हालत बुरी थी। मुझे देख उनका भय मिश्रित गुस्सा मुझ पर टूट पड़ा। वह खराब मौसम के बाद भी देर से आने के लिए मुझे कोसती रहीं। मैं कुछ नहीं बोला। चुपचाप कपड़े बदलता रहा। कभी एक मैग्जीन में ये लाइनें पढ़ी थीं।चिड़िया पतली से पतली शाख पर भी बेलौस और बिना डरे बैठती है, क्योंकि उसे उस शाख से अधिक भरोसा अपने पंखों पर होता है।मुझे बारिश में भीगी उस चिड़िया के पंखों की मजबूती अब भी कभी-कभी अपने कंधों पर महसूस होती है।
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About Me
- BHUPESH
- खुद को समझने की कोशिश लंबे समय से कर रहा हूं। जितना जानता हूं उतने की बात करूं तो स्कूल जाने के दौरान ही शब्दों को लय देने का फितूर साथ हो चला। बाद में किसी दौर में पत्रकारिता का जुनून सवार हुआ तो परिवार की भौंहे तन गईं फिर भी १५ साल से अपने इस पसंदीदा प्रोफेशन में बना (और बचा हुआ) हूं, यही बहुत है। अच्छे और ईमानदार लोग पसंद हैं। वैसा ही रहने की कोशिश भी करता हूं। ऐसा बना रहे, यही कामना है।
Kya guru kya mara hai. Aap ke dariya dili aur emosans ke daad deni hogi. Achha prayas hai, Lage rahiye ek na ek din safalta jarur melegi.
ReplyDeleteAkshya mishra, Allahabad
आपकी यह सत्य प्रसंग जीवन में कुछ नया करने का संदेश देते है, पिछली पोस्ट में मैने टिप्पणी कि थी सहयोग भी सहयोगांछी के के प्रति की जानी चाहिये, आपने ऐसे व्याक्ति के प्रति सहयोग की दृष्टि रखी जो इसका सही सुपात्र था। आपकी यह पोस्ट प्रेरणा देती है।
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