Wednesday 5 August, 2009

एक पुरानी कविता

मैं हूं किसी तालाब की

अनदेखी लहर,

तुम,

किसी बच्चे के हाथ से

छूटा कंकड़

जो, देता है मुझे विस्तार

किनारों तक...

1 comment:

  1. ..ya ho tum boond atki si aakash me,surya rashmi ka tumhe intzar,guzar gai jo bheetar se indradhanush ke rang hazaar....!kavita ke saath ched -chad to nahi kar di ?

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खुद को समझने की कोशिश लंबे समय से कर रहा हूं। जितना जानता हूं उतने की बात करूं तो स्कूल जाने के दौरान ही शब्दों को लय देने का फितूर साथ हो चला। बाद में किसी दौर में पत्रकारिता का जुनून सवार हुआ तो परिवार की भौंहे तन गईं फिर भी १५ साल से अपने इस पसंदीदा प्रोफेशन में बना (और बचा हुआ) हूं, यही बहुत है। अच्छे और ईमानदार लोग पसंद हैं। वैसा ही रहने की कोशिश भी करता हूं। ऐसा बना रहे, यही कामना है।