Monday, 31 August 2009

फुरसतिया के ब्लॉग से।

जो बीच भंवर इठलाया करते ,
बांधा करते है तट पर नांव नहीं।
संघर्षों के पथ के यायावर ,
सुख का जिनके घर रहा पडाव नहीं।
जो सुमन बीहडों में वन में खिलते हैं
वो माली के मोहताज नहीं होते,
जो दीप उम्र भर जलते हैं
वो दीवाली के मोहताज नहीं होते।

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खुद को समझने की कोशिश लंबे समय से कर रहा हूं। जितना जानता हूं उतने की बात करूं तो स्कूल जाने के दौरान ही शब्दों को लय देने का फितूर साथ हो चला। बाद में किसी दौर में पत्रकारिता का जुनून सवार हुआ तो परिवार की भौंहे तन गईं फिर भी १५ साल से अपने इस पसंदीदा प्रोफेशन में बना (और बचा हुआ) हूं, यही बहुत है। अच्छे और ईमानदार लोग पसंद हैं। वैसा ही रहने की कोशिश भी करता हूं। ऐसा बना रहे, यही कामना है।