Sunday 30 August, 2009

अनदेखी का शिकार पुरामहत्व स्मारक

विश्व विख्यात स्वर्ण नगरी जैसलमेर के विभिन्न भागों में प्राचीन एवं ऐतिहासिक धरोहरों का भंडार है, लेकिन अतीत की कहानी सुनाने वाली इन इमारतों की लगातार अनदेखी को रोका नहीं गया तो पुरामहत्व की अनमोल धरोहर के लिए खतरा खड़ा हो सकता है।
स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूनों किलों, हवेलियों और छतरियों से अटे जैसलमेर में स्थित विश्व विख्यात सोनार किले के संरक्षण को लेकर कोई विशेष प्रयास नहीं हुए है। यह सिर्फ जैसलमेर के सोनार किले की कहानी नहीं है, बल्कि जिले में कई दुर्ग भी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे है। जैसलमेर में सैकड़ों शानदार प्राचीन व ऐतिहासिक स्मारक हैं और इसी विरासत के बलबूते पर विश्व के पर्यटन मानचित्र पर यह स्वर्ण नगरी उभरी है, लेकिन इन स्मारकों के संरक्षण व रखरखाव के लिए प्रशासनिक स्तर पर किसी प्रकार की पहल दिखाई नहीं दे रही है।
जैसलमेर के इतिहासकार नंदकिशोर शर्मा का कहना है कि जैसलमेर विश्व धरोहर के क्षेत्र में अपनी एक अहम पहचान रखता है, लेकिन यहां की सांस्कृतिक धरोहर को विरासत के रूप में सहेज कर रखने के कोई महत्वपूर्ण प्रयास नहीं किए गए हैं। राज्य सरकार व केंद्र सरकार द्वारा प्राचीन धरोहरों के संरक्षण के लिए बना गए विभाग नाम मात्र के है।
जैसलमेर में सात हवेलियों का समूह है। सरकार ने वर्ष 1976 में तीन पूर्ण एवं एक हवेली का 42 प्रतिशत भाग अधिग्रहित किया था, लेकिन आज तक इनके संरक्षण के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए हैं। 'लिपिंग फोर्ट' के रूप में विश्व विख्यात जैसलमेर के 'सोनार किले' के संरक्षण के लिए योजनाएं बनीं, लेकिन उन पर सही रूप से अमल नहीं किया गया।
नगर पालिका व पुरातत्व विभाग में तालमेल नहीं होने से दुर्ग से पानी की निकासी की अव्यवस्था कोढ में खाज का काम कर रही है। कुछ समय पहले पुरामहत्व के स्मारकों को संवारने का काम करने वाले एक संगठन के माध्यम से तथा नगरपालिका और पुरातत्व विभाग ने सोनार किले पर करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित दुर्ग जर्जर हो रहे हैं। जैसलमेर जिले के मानगढ, नाचना, हड्डा किशनगढ, काणोद, लखा आदि गांवों में कई दुर्ग हैं। जैसलमेर पर्यटन व्यवसाय महासंघ के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह राठौड़ का मानना है कि सरकार एवं विरासत प्रेमी संस्थाओं द्वारा प्राचीन धरोहरों के लिए जो कुछ भी किया जा रहा है उसमें स्थानीय लोगों की भागीदारी जरूरी है। पर्यटकों का मानना है कि प्राचीन धरोहरों व स्मारकों की अनदेखी से यहां के पर्यटन को खतरा है।
अगर ऐतिहासिक विरासत को सहेजने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए गए तो वह दिन दूर नहीं जब इन विरासतों का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। ऐसे में जैसलमेर के ही नहीं बल्कि भारत के पर्यटन को बहुत बड़ा झटका लग सकता है।

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खुद को समझने की कोशिश लंबे समय से कर रहा हूं। जितना जानता हूं उतने की बात करूं तो स्कूल जाने के दौरान ही शब्दों को लय देने का फितूर साथ हो चला। बाद में किसी दौर में पत्रकारिता का जुनून सवार हुआ तो परिवार की भौंहे तन गईं फिर भी १५ साल से अपने इस पसंदीदा प्रोफेशन में बना (और बचा हुआ) हूं, यही बहुत है। अच्छे और ईमानदार लोग पसंद हैं। वैसा ही रहने की कोशिश भी करता हूं। ऐसा बना रहे, यही कामना है।